एक टुकड़ा धुप
कुछ नरम मुलायम सी यादे,
फिर समेट लायी हूँ मै
कुछ hazy vague से इरादे !
फिर वोही देस परदेस का confusion
और कुछेक महीनो का introspection,
दो suitcases में लो आ गया फिर से
Where do I belong का tension !
इधर New York की ऊँची ईमारते
उधर Mummy Papa की ढलती उमर,
कुछ और अभी मै Dollars कमाऊ
की चलो अब बहुत हुआ ... घर लौट जाऊ!
इधर है चमकती पिघलती बर्फ
उधर है खिलती दमकती धुप,
इस देस की हो जाऊ
की चलो अब बहुत हुआ ... घर लौट जाऊ!
इधर भी है इक दुनिया मेरी
कुछ बिखरी कुछ आधी अधूरी,
उधर भी है इक आस मेरी
कुछ धुंधली पड़ती सी सांस मेरी,
इस चमक में छुप जाऊ
की चलो अब बहुत हुआ ... घर लौट जाऊ!
ये इधर उधर का चक्कर
बस अब दिमाग से हटाऊ,
फिर से इक बार अपने code में घुस जाऊ
एक और लो हो गयी poetry...अब शांत हो जाऊ,
जो चल रहा है उसे वैसे ही चलाऊ
(FB के likes देख कर खुश हो जाऊ ...)
की चलो अब बहुत हुआ ... घर लौट जाऊ?
1 comment:
बहुत ख़ूब
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